17 को नहाय खाय 18 सितम्बर को जीवित्पुत्रिका व्रत : आचार्य नवीन

अ.भा.सं.सू. : गयाजी धाम, गया
सौभाग्यकाँक्षिणी स्त्रियों के लिए सौभाग्य एवं दीर्घजीवी संतानों के निमित्त जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) का अहम स्थान है। शास्त्रोक्त वचन एवं पंञ्चाङ्गो पर विचारणीय तथ्य है कि अष्टमी का उपभोग काल कितना है और क्या नियम है?
बद्रीकाशी पञ्चाङ्ग १७ सितंबर को व्रतोपवास दिखा रहे हैं जैसा की पहले होते रहा है अन्य सभी पञ्चाङ्ग १८ सितम्बर २०२२ रविवार को व्रतोपवास लिख रहे हैं जिसे स्पष्ट कर देना उचित होगा।
हृषीकेश (हरिहर, शिवमूर्ति), अन्नपूर्णा, हनुमान एवं महावीर १७ सितम्बर को दिन ०२/५६ से १८ सितम्बर को शाम ०४/५६ तक अष्टमी बताते हैं। आदित्य पञ्चाङ्ग में १७ सितम्बर को दिन ०२/३४ से १८ सितम्बर को शाम ०४/१६ तक अष्टमी बताते हैं। विश्व १७ सितम्बर को दिन ०२/२९ से १८ सितम्बर शाम ०४/११ तक अष्टमी दिखा रहे हैं। निर्णयसागर एवं मार्तण्ड १७ सितम्बर को दिन ०२/१४ से १८ सितम्बर शाम ०४/३३ तक अष्टमी दर्शा रहें हैं। बद्रीकाशी १७ सितम्बर को दिन ०२/१५ से १८ सितम्बर शाम ०४/३३ तक अष्टमी व्याप्त बता रहें हैं।
‘सप्तमी सहिता और सप्तमी रहिता एवं व्रतद्वयोपास’ के प्रमाण के आधार पर द्वंद कि स्थिति उत्पन्न है अतः एक और शास्त्रोक्त वचन आश्विनस्येस्येसितोष्टभ्यां या स्त्रियोेन्नभ्भुञ्जते।
मृतवत्सा भवेयुस्ता विधवा दुर्भगा ध्रुवम्।।
यह कथनानुसार आश्विन कृष्ण व्याप्त अष्टमी तिथि में जो स्त्रियाँ अन्न खाती है वे मृतवत्सा, विधवा किं वा अभागिनी होती हैं। शास्त्र का निराकरण शास्त्र में मिल जाता है तो पूर्ण दायित्व शास्त्र पर चला जाता है।
अतः उपरोक्त सभी तथ्यों पर विचार करते हुए स्पष्ट निर्णय आता है कि-
★ १७ सितम्बर शनिवार- स्नानासन (नेहाय-खाय) दिन ०२/५६ के बाद फलाहार लिया जाए जो सरगही (रात्रि ०३/३० के पूर्व) में भी पालन होगा।
★ १८ सितम्बर रविवार व्रतोपवास रात्रि ०४/३९ के पहले पूजा कर लें।
★ १९ सितम्बर सोमवार सूर्याेदय (गया में ०५/४१) के बाद पारण र्निर्म्रान्त रुप से किया जाए।
यह निर्णय गयाजी से प्रकाशित व्रत निर्णय पुष्प में दिया गया है।
जीउतिया व्रत में मड़ुए का आटा, सतपुतिया झींगी, कुशी केराव और गोलवाँ के शाक विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। चिल्हो, सियारो, राजा जीमूतवाहन एवं सोने, चाँदी अथवा धागे की जीउतिया की पूजा होती है।
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