ब्रह्माण्ड के प्रथम सूचना प्रौद्योगिकी एवं पर्यटन के आदि गुरु थे नारद

आचार्य धीरज द्विवेदी ‘याज्ञिक’
अखिल ब्रह्माण्ड के प्रथम सूचना प्रौद्योगिकी एवं पर्यटन के आदि गुरु देवर्षि श्री नारद जी का जन्म सतयुग में ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था। इनके जयंती पर वीणा वादन करके एवं पत्रकारिता से जुड़े लोगों का सम्मान करके इन्हें प्रणाम करते हुए स्मरण किया जाता है। देवर्षि नारद जी भगवान के परम भक्त, आत्मज्ञानी, नैष्ठिक ब्रह्मचारी, त्रिकाल ज्ञानी, वीणा द्वारा निरंतर प्रभु भक्ति के प्रचारक, स्वकर्म में दक्ष, मेधावी, निर्भय, विनयशील, जितेन्द्रिय, सत्यवादी, स्थितप्रज्ञ, तपस्वी, चारों पुरुषार्थ के ज्ञाता, परमयोगी, सूर्य के समान तेजस्वी, त्रिलोकी पर्यटक, वायु के समान सभी युगों, समाजों और लोकों में विचरण करने वाले, वश में किये हुए मन वाले नीतिज्ञ, अप्रमादी, आनंदरत, कवि, प्राणियों पर निरूस्वार्थ प्रीति रखने वाले, सूचना प्रसारण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले, लोक कल्याण में निरत, देव, मनुष्य, राक्षस सभी लोकों एवं समाज में सम्मान पाने वाले देवता तथापि ऋषित्व प्राप्त देवर्षि थे।
ब्रह्माण्ड के प्रथम पत्रकार पत्रकारिता के जनक, स्वरब्रह्म विभूषित देवदत्त वीणा पर अहर्निश हरिगुण गान करनेवाले ब्रह्मा जी के मानसपुत्र देवर्षिनारद पौराणिक कथाओं के आधार पर उपबर्हण नाम के गंधर्व थे। इन्हें अपनी सुंदरता पर बड़ा घमंड था एक बार कुछ गंधर्व और अप्सराएं गंधर्व गान विद्या द्वारा ब्रह्मा जी की आरधना कर रही थीं जिससे ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर दर्शन दिये उसी समय उपबर्हण सज संवर कर श्रृंगार भाव से परम रूपसी अप्सरा के साथ उपस्थित हुए। उपबर्हण के इस उन्माद पूर्ण उद्दंड आचरण को देख ब्रह्माजी ने नाराज होकर शूद्र योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। परिणाम स्वरूप उपबर्हण शूद्रा दासी के पुत्र बनकर उत्पन्न हुए भक्ति के प्रभाव और संत कृपा से यही उपबर्हण ब्रह्मा के मानसपुत्र के रूप मे उत्पन्न हुए। जिन्होंने तपस्या कर वायच मार्ग से तीनों लोकों मे विचरने का वरदान प्राप्त कर दुनिया के प्रथम पत्रकार बने। स्वरब्रह्म विभूषित वीणा पर श्रीमन्नारायण नारायण नारायण संकीर्तन करते निःस्वार्थ निर्भीक निपक्ष पत्रकारिता के देवताओं और असुरों दोनों के समादृत प्रेमा भक्ति के आचार्य देवर्षि नारद जी को उनके पावन जयंती पर शत् शत् नमन।
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