दो दिनों के चक्कर में पड़ा रक्षाबंधन सम्वत् २०७९ (२०२२)

अ.भा.सं.सू. गया : आचार्य नवीन
रक्षा-सुरक्षा बन्धन का उत्सव श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाने वाला इस वर्ष सँशय की स्थिति में हैं। कोई विद्वान ११ अगस्त को रात्रि ०८-२५ से ०८-५२ (पञ्चाङ्ग में भेद होने से) भद्रा बाद तो कोई भद्रा में ही प्रदोष (वो भी मतान्तर है) काल में निर्देश दे रहे हैं तो कोई १२ अगस्त को व्याप्त पूर्णिमा तिथि तक।
११ अगस्त को भद्रान्त की स्थिति पञ्चाङ्गों में :-
श्याम बाबा, बद्रीकाशी रात्रि ०८-५१ में भद्रान्त
निर्णय सागर, मार्तण्ड रात्रि ०८-५२ में भद्रान्त
विश्व रात्रि ०८-३४ में भद्रान्त
आदित्य रात्रि ०८-२६ में भद्रान्त
महावीर, हृषीकेश हरिहर एवं शिवमूर्ति, हनुमान, अन्नपूर्णा रात्रि ०८-२५ में भद्रान्त
जो विद्वान श्रवण नक्षत्र की उपस्थिति के कारण ११ अगस्त को उत्तम मान रहे है तो वहीं हाल के वर्षों में २०४६ (१९८९), २०४८ (१९९१), २०४९ (१९९२), २०५१ (१९९४), २०५३ (१९९६), २०५४ (१९९७), २०५६ (१९९९), २०५७ (२०००), २०५९ (२००२), २०६० (२००३), २०६७ (२०१० ), २०७० (२०१३), २०७२ (२०१५), २०७३ (२०१६), २०७५ (२०१८), २०७८ ( २०२१) में भी घनिष्ठा नक्षत्र में रक्षाबंधन सफलता पूर्वक मनाया गया है।
१२ अगस्त को व्याप्त पूर्णिमा तिथि पञ्चाङ्गो में :-
मार्तण्ड, निर्णय सागर, श्याम बाबा प्रातः ०७-०५ बजे तक
बद्रीकाशी प्रातः ०७-०६ बजे तक
हृषिकेश शिवमूर्ति, हनुमान, अन्नपूर्णा, महावीर प्रातः ०७-१६ बजे तक
हृषीकेश हरिहर प्रातः ०७-१७ बजे तक
आदित्य प्रातः ०७-१८ बजे तक
विश्व प्रातः ०७-२५
जहाँ भद्रा बाद रक्षाबंधन का समर्थन है तो अधिक काल में मना किया गया है। जो बहनों को उपवास में अधिकाधिक जगहों पर जाकर भाई को रक्षाबंधन करनी हो या आचार्य, पुरोहित, गुरु, यजमानों-शिष्यों को रक्षाबंधन करते हैं तो क्या यह सम्भव है कि इस अवधि में रक्षा विधान किया जाए?
मेरे पास दूरभाष द्वारा एवं साक्षात्कार से लोग शुद्ध मुहूर्त जानने को उत्सुक हैं। भद्राकाल का त्याग अवश्य करें, क्योंकि भद्रा में रक्षाबंधन अनिष्ट कारक होता है। इसकी कई कथाएँ प्रचलित है। यहाँ भद्रा किस लोक में वास कर रही है इसकी मान्यता नहीं है।
२०५५ (१९९८) ७ः४२ तक, २०६१ (२००४) ८ः१५ तक, २०७० (२०१३) ७ः२५ प्रातः तक पूर्णिमा रहने एवं एक दिन पूर्व देर शाम भद्रा समाप्त होने के बावजूद पूरे दिन रक्षाबंधन का उत्सव मनाने का निर्देष दिया गया है।
‘‘भद्रायाम् द्वे न कर्तब्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा’’ श्रावणी उपाकर्मादि भी सूर्य की उपस्थिति में उत्तम माना जाता है। विश्व पञ्चाङ्ग में पूर्णिमा २०७० (२०१३) के समय व्याप्त है। कुछ प्रान्तों में पूर्वाह्न में ही रक्षाबंधन उत्तम मानते हैं। सम्वत् २०७९ (२०२२) मे ११ अगस्त को असमञ्जस कि स्थिति रहते हुए १२ अगस्त को औदयिक पूर्णिमा में निर्भ्रान्त रूप से रक्षाबंधन मनाया जाए।
माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षासूत्र बाँध कर बामनावतार नारायण को प्रतीज्ञा बन्धन से मुक्त किया था तभी से ‘‘येनबद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल। तेन त्वाम् प्रतिवध्नामि रक्षेण माचल माचला।।’’
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