हे नारी तू सब पे भारी

अंशु कुमारी, धनबाद
हे नारी तू सब पे भारी
तू एक है,
फिर भी अनेक है।
तू आरम्भ है,
तू ही अंत है।
तू दुर्गा, तू ही काली,
तू ही ममता की प्याली।
कभी बेटी, कभी बहन,
कभी अर्धांगिनी बन करे शैतानो का दहन।
तेरी आँखें हैं ममता का प्रतीक,
तेरी मुस्कान है प्रगती का।
तू ही अभिमान है देष का,
तेरी चुनर है ध्वज।
तू ही आईना है समाज का,
तू ही श्रृंगार है धरती की।
क्यों तू हतास है, आज क्यों निराष है,
बन सिहनी, उठा तलवार,
कर आज उन दुष्टो पर वार।
विजय का तू फूँक शंख
दे सृष्टि को एक नया रंग।
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