जागो ! ………………………….

मनोज कु. मिश्र ‘पद्मनाभ’
चारों ओर अंधकार का साम्राज्य व्याप्त है। कहीं लूट कहीं अपहरण कहीं बलात्कार कहीं हत्या कहीं हत्या का असफल प्रयास। देश के कोने कोने से हर दिन ऐसी खबरों का अंबार देखने सुनने पढ़ने में आता है।मन विकल होता है उदासी बौखलाहट फिर चर्चा परिचर्चा का दौर आरंभ होता है चौक चौराहों संगठनों समितियों घर बाहर सब जगह।अपराधी को जेल से लेकर अंगभंग करने फांसी देने सामाजिक बहिष्कार करने उसके और उसके समस्त परिजनों का हुक्का पानी बंद कर देने की बातें एक दूसरे को नेक सलाह का बाजार गर्म होता है।दहेज प्रताड़ना प्रेम प्रसंग अवैध संबंध को कारण बताकर अपनी अपनी मानसिक शांति कर ली जाती है।और तो छोड़िये अपनी पुरुष वादी या नारी श्रद्धावादी विचारधारा के आलोक में एक पक्षीय निर्णय भी सुना दिये जाते हैँ।जिस समाज विशेष के साथ घटना घटती है वह या फिर जिस जाति विशेष के साथ घटना घटती है उसके कुछ नुमाइन्दे यह कहते हुए आगे बढ़ जाते हैँ कि हमारे साथ यह घटना इसलिए घटी क्योंकि हम सवर्ण या असवर्ण हैं।लोग बाग तो यह कहते हुए देखे जाते हैं कि ऐसा उस समाज या सम्प्रदाय में हुआ है हमारे समाज या सम्प्रदाय की यह बात नहीं है।जबकि आज के इस बिगड़ती मानसिकता के दौर में कोई भी समाज जाति या सम्प्रदाय उपरोक्त परिस्थितियों से शायद ही वंचित है।
सिर्फ चर्चा परिचर्चा फिर सबकुछ तब तक बंद जबतक अगली घटना की सूचना नहीं मिल जाती।
समस्या मूल कहां क्यों कैसे इस पर न कोई पहल न परिचर्चा।न ही सार्थक समाधान की खोज।घटना घटे नहीं कि परिचर्चा का सर्वत्र अभाव।अगली घटना का सबों को पुनः इंतज़ार।आखिर कब तक?यह कभी भी कहीं भी सवर्ण या असवर्ण किसी के भी साथ।फिर दोषी कौन?समाज परिवेश जाति सम्प्रदाय खान पान रहन सहन पाश्चात्य जीवन शैली अति स्वच्छंद वातावरण बेमेल संबंध अशिक्षा अतिशिक्षा सिनेमा टी.वी.फैशन पैसन अंग्रेजी या हिन्दी उर्दू भाषा या फिर प्राचीन परम्पराओं की अवहेलना धार्मिकता अधार्मिकता बड़बोलापन सहनशीलता या चुप्पी या फिर कुछ और। सर्वत्र अंधकार। कुम्भकरणी निद्रा। अति जाग्रता। अब तो उठो अब तो जागो आखिर कब तक सोते रहोगे? आने वाला समय टकटकी लगाये इंतजार कर रहा है।इधर या उधर आखिर रास्ता है किधर?कहाँ जाना है क्या करना है कैसे करना है किसे करना है कौन करेगा मैं हम आप या आसमान का फरिश्ता?
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