अरे ओ कैमरेवाले भैया जरा फोटो तो सही से ले ले

मनोज कुमार मिश्र”पद्मनाभ”
अरे ओ कैमरेवाले भैया जरा फोटो तो सही से ले ले। अरे यार कंबल, चूड़ा, चादर, कपड़ा बांट रहा हूं गरीबों के बीच। इस कड़ाके की ठंढ में इन गरीबों का भला कर रहा हूँ। भले दस ही बांटा बिल तो सौ का बनवाऊंगा ही न। गरीबों के साथ कुछ अपना भी तो कल्याण होना चाहिए। इनका काम तो सौ रुपये वाले पुराने पतले वाले कंबल से चल जाएगा पर मेरे घर वाले क्या यही ओढ़ेंगे भला। ई कंबल सेे ई कनकनी में जाड़ा जाएगा? कम से कम पांच-छः सौ रुपये वाले एक-एक कम्बल तो चाहिए ही न।और फिर फोटो तो मीडिया में भी डालना होगा। न्यूज भी थोड़ा धांसू बनवाना पड़ेगा। नहीं तो सब गड़बड़ हो जाएगा।
चुड़वो तो परकीये साल वाला है। जायदो ई लोग सब खा जाएगा। बकी हां ए पी.ए.साहब घर पर कतरनिये वाला भेजवाइएगा समझे न। अरे हियां तो फोटो में तिलकुट आइए गया, घरे जरूर पांच किलो भेजवा दीजिएगा और सुनिये एक चक्की बढ़िया, सोंधा वाला गुड़ भी भेज दीजियेगा।
अरे ई का कर रहे हो भाई। जरा प्रेम से बांटो कंबल, चूड़ा सब। गरीब लोग है। इनको ही देने से पुण्य मिलता है। बड़ा पुण्य का काम है ई सब समझे न।

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सुन्दर कटाक्ष।
आज के समाज का विशेष तौर पर राजनीतिक पहचान बनाने में लगे लोगों का वास्तविक चित्रण,रेखांकन जो की धरातलीय वास्तविक घटनाओं से संबद्ध होने से बहुत ही रोचक एवं सच्ची जान पड़ती है,भावनाओं को उद्वेलित भी करने में सक्षम है।