मगध प्रमंडल की साहित्य साधना एक दृष्टिकोण…..

प्रो. मनोज कुमार मिश्र “पद्मनाभ”
असिस्टेंट प्रोफेसर
शाक्यमुनि कालेज, बोधगया।
महात्माबुद्ध की ज्ञानस्थली, चाणक्य चंद्रगुप्त से संबद्ध बिहार राज्य का मगध प्रमंडल अनेकानेक स्वर्णिम सत्कृत्यों के कारण विश्व के मानचित्र पर केन्द्रीभूत और स्तुत्य रहा है। ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के साथ -साथ यहाँ की साहित्यिक पीठिका भी अत्यंत समृद्धशाली रही है।काव्य -साधना के लिये यह प्रमंडल विशेष रूप से वैशिष्ट्यपूर्ण रहा है।अर्थाभाव के कारण अनेक कृतियों के रसास्वादन से वंचित जनमानस पुनः पुनः शोधकर्ता के प्रति आशान्वित रहता है।
मगध प्रमंडल की साहित्य साधना पर विचार करते समय कतिपय समस्याएं आड़े आती हैं।इनका समाधान किये बिना आगे बढ़ पाना थोड़ा कठिन लगता है।यथा,यहाँ की परम्परा का आरंभिक काल किसे माना जाये और प्राचीन मगध एवं वर्तमान मगध प्रमंडल की भौगोलिक सीमा में सामंजस्य कैसे स्थापित किया जाये।ऐतिहासिक दृष्टिकोण से सम्पूर्ण मगध की साहित्यिक साधना एक विशेष प्रवाह में दृष्टिगोचर होती है,क्योंकि प्राचीन मगध और वर्तमान मगध प्रमंडल का ऐतिहासिक, भौगोलिक, और सांस्कृतिक परिवेश लगभग समान है।आज भी प्रमंडल का यथावत संबंध मगध जनपद से है।इनकी साहित्यिक गतिविधियों में भी काफी साम्यता है।
मगध की साहित्यिक भूमि आरंभ से काफी उर्वरा रही है।संस्कृत साहित्य के प्रतिभासंपन्न प्रसिद्ध मनीषी वाणभट्ट की जन्मभूमि प्रीतिकूट इसी प्रमंडल की परिधि में अवस्थित है।इनके परम मित्र ईशान चंद्र का निवास भी प्रीतिकूट के निकट ही अवस्थित है।आईये साहित्यिक परंपरा का अध्ययन हम यहीं से आरंभ करते हैं।
सातवीं शताब्दी के (७००/१७००)ईशानचन्द्र से मगध की साहित्यिक परम्परा का आरंभ माना जा सकता है।वैसे पूर्ववर्ती आलोचक सरहपा या सरहपाद को हिन्दी साहित्य का सर्वाधिक प्राचीन कवि मानते हैं किंतु आचार्य शिवपूजन सहाय ने ईशानचन्द्र जी को एक शानदार कवि माना है।इनके बाद सिद्धों के द्वारा सँवारे गये हिन्दी के रूप ,जिसे हम मागधी या पुरातन हिन्दी कहते हैं,इसके रचनाकार चौरासी सिद्धों में चौदह मगध से संबंधित माने जाते ह़ै।इनका कालखंड आठवीं से दशवीं शताब्दी के मध्य मान्य है।ये हैं…भुसुकपा,व्योलापा,शखरपा,कम्वपा,होम्मिया,मलीया,नरोपा, शलिपा एवं शांतिपा।इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आदिकालीन साहित्याकाश के इस क्षेत्र में अनेक नक्षत्र विद्यमान थे,जिनमें ईशानचन्द्र, सिद्धों,विनय श्री हरिब्रह्म आदि का होना सम्भव है।
मगध की साहित्य साधना में भक्ति,शृंगार, एवं शौर्य की त्रिवेणी प्रवाहित प्रतीत होती है,वैसे आरंभिक काल होने के कारण इस क्षेत्र की साहित्य साधना का कोई प्रामाणिक इतिहास प्राप्त नहीं होता।वैज्ञानिक ,ऐतिहासिक साहित्यानुसंधान की कमी के कारण इसका साहित्याकाश मेघाच्छन्न प्रतीत होता है।पूर्व साहित्त्य की अपेक्षा परवर्ती साहित्य विशेष स्पष्ट एवं प्रामाणिक हैं।
मध्य काल(१८वीं/१९वीं शताब्दी मध्य तक) में भक्ति और नीति की प्रवृत्तियों की प्रधानता दृष्टिगोचर होती है।भाषा वैशिष्ट्य के आधार पर अवधी,व्रजभाषा, एवं मागधी के साथ ही खड़ी बोली की रचनाओं में नायिका भेद एवं नख शिख वर्णन से ओतप्रोत साहित्य अधिक सृजित किये गये।गया के चन्द्रमौली मिश्र,टिकारी के प्रसिद्ध राजकवि दिनेश द्विवेदी की रचनाएं रीतियुक्त प्रतीत होती हैं।पंडित नाथ पाठक ने सारस्वत व्याकरण को बिरहा छंदों में अनूदित किया।”पंचग्रंथी “रामरहस्य साहब की प्रमुख रचनाओं में एक है।इस काल खंड की अन्य रचनाओं में “फल्गु वर्णन,मगहमहिमा,टिकारी राज्य आदि ग्रंथो की भी चर्चा होती है।उन्नीसवीं शताब्दी पूर्वार्द्ध में साहित्य अनुसंधान की ओर विशेष उन्मुख दिखता है।साहित्य सृजन भी इस कालखंड में उन्नति की ओर अग्रसर प्रतीत होते हैं।सबसे श्लाघा की बात यह है कि यह कालखंड विभिन्न शास्त्रों के सृजन का काल रहा है।यथा काव्यशास्त्र, भाषाशास्त्र,धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र, आदि की रचनायें हुईं।यह कहना युक्तिसंगत होगा कि यह काल मगध की साहित्य सर्जना का उत्कर्ष काल रहा है।सिरियावाँ(गया)के पंडित चिरंजीवी मिश्र के द्वारा अनेक वैद्यक ग्रंथों की रचना की गई तो गोपीचंद जी के द्वारा मगही में रचना का सूत्रपात किया गया।इसके बावजूद भी हिन्दी एवं संस्कृत के भक्तिपरक ग्रंथों की अधिकता दिखती है।अयोध्या प्रसाद मिश्र के द्वारा सुधाविंद,स्वप्नविचार,आरोग्य शिक्षा आदि कयी ग्रंथों की रचनायें की गईं।इन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का पद्यानुवाद भी किया।इसी कालखंड में बैजनाथ द्विवेदी प्रभृति साहित्यकारों की उपस्थिति का प्रमाण भी मिलता है।
आधुनिक काल(१९वीं/से २०वीं शताब्दी मध्य) में एक ओर जहाँ आधुनिकता का बीजारोपण हो रहा था वहीं दूसरी तरफ साहित्यकार गण परम्परागत रूढ़ियों को विस्मृत नहीं कर पा रहे थे।इनमें बालगोविंद मिश्र “कमलेश”(बाँसाटाँड़),चंद्रशेखर भट्ट ,आनंदी मिश्र,शिवनंदन प्रसाद आदि के नाम स्मरणीय हैं।विकास क्रम में आधुनिकता का प्रभाव विशेष प्रबल दिखा तथापि इस क्षेत्र के साहित्यकार जीवन की नवीन परिस्थितियों से पूर्णतया सामंजस्य स्थापित कर पाने मे अक्षम रहे।फलतः तत्कालीन साहित्य पुराने नहीं तो बिल्कुल नये भी नहीं कहे जा सकते।इस क्षेत्र से अनेक पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन भी हुआ,इनमें बिहार बंधु,पाटलिपुत्र, साहित्य सरोवर मगध -गया,मगहिया भाई,गया समाचार, उपदेश लहरी,लक्ष्मी, प्रियंवदा, वसुन्धरा,श्री विद्या आदि के नाम शीर्षस्थ हैं।
बीसवीं शताब्दी पूर्वार्द्ध में प्रमंडलीय साहित्याकाश अनेक नक्षत्रों से सुशोभित हुआ।इनमे कुछ विद्वान संस्कृत साहित्य से विशेष प्रभावित दिखते हैं।ये संस्कृत के श्लोकों की रचना में ही आनंद की अनुभूति करते हैं।फिर भी युगीन प्रभाव में यदा कदा हिन्दी साहित्य की ओर भी अग्रसर दिखते हैं।इस वर्ग के साहित्यमनीषियों में विश्वसेनाचार्य,पं. रमा प्रसाद मिश्र,पं.वंशीधर मिश्र,पं.रामगुलामी मिश्र,पं. नागनाथ मिश्र,पं.यदुनंदन मिश्र,विष्णुदत्त शास्त्री आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।हिन्दी साहित्य के कतिपय नामचीन ऐसे भी साहित्यकार इस कालखंड में हुये जिनकी संपूर्ण रचनाओं का दर्शन तो नहीं हो पाता किंतु कुछेक तत्कालीन पत्रिकाओं में यत्र तत्र प्राप्त हो जाते हैं।मगध प्रमंडल की साहित्यिक निधि को सुसम्पन्न बनाने में इन विद्वानों का भी अप्रतिम योगदान रहा है।कान्हूलाल गुर्दा कान्ह,हरिहर प्रसाद जिंदल,केदार सिंह,गंगाधर शर्मा,काली प्रसाद चौधरी “मीत”,रामानुग्रह शर्मा”नवनिधि”,रामचीज पाण्डे”राम”,बलिराम मिश्र,श्याम लाल ,त्रिवेणी उपाध्याय, बदरी नाथ वर्मा,देवशरण शर्मा,कैलाश सिंह, कृष्ण प्रसाद सिंह”कृष्ण”,जगन्नाथ प्रसाद सिंह”कविकिंकर”,तपेश्वर सिंह”तपस्वी”,बाबुलाल शर्मा, सीता राम मिश्र “शशि”,शिवनंदन सिंह,युवक विहार, आदित्य नारायण पाण्डे,यदुनंदन सहाय,सैयद मुहम्मद हुसैन”दीन”,द्वारिका प्रसाद, गुरु प्रसाद” सुजन”,इन्द्रजीत लाल “कुटरियार”,हरिवंश प्रसाद द्विवेदी”जौहरी”,दुर्गेशनंदन “माणिक”आदि अग्रणी की भूमिका में हैं।बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक आते आते प्रकाशन की सुविधा उपलब्ध हो जाने के कारण इस क्षेत्र में कुछ ऐसे साहित्यकारों का पदार्पण हुआ जिन्होनें न सिर्फ मगध को अपितु सम्पूर्ण साहित्य जगत् को अपने प्रभाव में ले लिया।इनके द्वारा विभिन्न आलोचनाग्रंथ,ऐतिहासिक ग्रंथ,साहित्यकोश आदि का प्रकाशन भी हुआ।आज भी यह क्षेत्र महाकाव्य, खंडकाव्य, मुक्तक काव्य,काव्यानुवाद, उपन्यास, कहानी,निबंध ,आलोचना, गजल,रिपोर्ताज, साक्षात्कार आदि से साहित्य संसार को समृद्ध करने में सतत क्रियाशील है।मगध प्रमंडलीय साहित्य की परंपरा में आकाशीय नक्षत्रराज के रूप में इन कवि चतुष्टय का नामोल्लेख न करना मगध की साहित्यिक परम्परा का अपमान होगा।पं.मोहन लाल महतो “वियोगी”,आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री,पं.हंसकुमार तिवारी एवं गुलाब खंडेलवाल, के नाम सर्वोपरि हैं।इनकी विशेष ख्यात रचनाएं क्रमशः आर्यावर्त,राधा,गीतांजलि का काव्यानुवाद एवं “उषा “अविस्मरणीय हैं।इनके साथ ही साहित्य के क्षेत्र में अद्भुत प्रतिभा संपन्न कामता प्रसाद सिंह”काम”,गीतकार बिहारी लाल मिश्र,पं. श्यामदत्त मिश्र ,उमेश चंद्र मिश्र,किशोरी शरण वर्मा ,रामनरेश नाहर,नारायण लाल कटरियार,राम गोपाल शर्मा “रुद्र” रामनरेश पाठक ,पं. गोपाल लाल सिजुआर ,सिद्धि लाल माणिक,पं. लोकनाथ मिश्र,डा.रामकृष्ण मिश्र ,
कविराज पं.वेदनाथ मिश्र, गोवर्धन प्रसाद सदय प्रभृति साहित्यसाधकों को हिन्दी जगत कदापि विस्मृत नहीं कर सकता।
कुछेक साहित्यिक संस्थायें भी मगध की साहित्यिक परंपरा को गति देने में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं इनमें हिंदी साहित्य सम्मेलन गया,साहित्य महापरिषद् गया,
कामता सेवा संघ (देव ,औरंगाबाद),राष्ट्रभाषा परिषद् औरंगाबाद की भी सक्रिय भूमिका है।
(साभार… हिन्दी साहित्य और बिहार, गया के लेखक और कवि,मगध प्रमंडल की साहित्यिक परंपरा”डा.मणिकांत मिश्र”)।

Hits: 17
क्या हमारे पास हमारे लिए समय है ?
पंडुई : गौरवशाली अतित का एक विरासत
08 मई 2022 रविवार को सूर्याेदय से दोपहर 02ः58 मिनट तक रविपुष्यमृत योग
अप्रशिक्षित शिक्षकों ने डीईओ गया से वेतन भुगतान की लगाई गुहार
शाकद्वीप: शक संबत और मध्य एशिया