पंडुई : गौरवशाली अतित का एक विरासत

अ.भा.सं.सू. जहानाबाद : सत्येन्द्र कुमार पाठक
बिहार के जहानाबाद जिला मुख्यालय जहानाबाद से 5 किलो मीटर पश्चिम में दरघा नदी के तट पर 1716 ई. में पंडुई स्थापित है। मगध साम्राज्य के अंतर्गत अरवल जिले के केयाल गढ़ और भोजपुर जिले के नोनार गढ़ एवं जहानाबाद जिले के पंडुई व शीतल गढ़ का निर्माण राजकुमार शीतल मउआर के पूर्वज द्वारा किया गया था। केयाल गढ़ का राजा अदन सिंह ने दिल्ली का मुगल शासक औरंगजेब के पुत्र बहादुर शाह जफ़र के विशाल सेना के साथ युद्ध किया और केयालगढ़ राज हारने के बाद मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ने केयाल गढ़ राज को समाप्त कर दिया था। अरवल जिले के करपी प्रखण्ड के केयाल गढ़ के राजा अदन सिंह ने पुत्र राजकुमार शीतल मउआर के साथ सेना को लेकर भोजपुर के राजपूत राजा सुधिष्ट सिंह के पास गए थे। सन 1710 में राजा अदन सिंह केयालगढ़ हार के बदला लेने के लिए केयाल राज का राजा अदन सिंह द्वारा केयाल गढ़ एवं भोजपुर की सेना के साथ मुग़ल बादशाह बहादुर शाह के साथ भोजपुर में युद्ध किया।.भोजपुर युद्ध में अदन सिंह युद्ध हार गए। राजा अदन सिंह अपने मित्र भोजपुर के राजपूत राजा सुधिस्ट सिंह के साथ भोजपुर युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। राजा अदन सिंह के पुत्र राजकुंमार शीतल मउआर युद्ध में बच कर शीतल गढ़ आये थे। शितलगढ़ के राजा द्वारा शीतल महुआर को उत्तराधिकारी बनाए गये। राजा शीतल मउआर महुआर शितलगढ़ के राजा बनने के बाद दरधा नदी के पश्चमी किनारे पाण्डुई नगर का निर्माण किया गया। शितल मउआर के पुत्र जगरनाथ मऊआर के पुत्रों में डंबर मउआर और वैजनाथ मउआर था। डंबर मउआर सन्यासी हो गये और वैजनाथ मउआर द्वारा पंडुई राजवंश के वैजनाथ मउआर के पुत्र तेजा शाही था। राजा तेजा शाही द्वारा दरघा नदी के पश्चमी किनारे पर गढ़ हेतु भूमि देखने के क्रम में टीलेनुमा आकृति का एक भूभाग का उत्खनन कर शिवलिंग प्राप्त होने पर पुनः पाण्डुई बसाया गया था। पंडुई के भूभाग को ‘पंडुबा’ को राजा तेजा सिंह ने पंडुबा को पंडुई नामकरण किया था। पंडुई को सन 1735 तक टिकारी राज के अधीन था। टिकरी राज ने पोखमा के सामंत बाबू साहब को पंडुई को दिया था। शितालगढ़ के राजा तेज सिंह द्वारा टिकारी राज पंडुई मौजे की जमीनदारी खरीद कर पंडुई राज की स्थापना कीगयी थी। पंडुई राजका भवन निर्माण शितलगढ़ का राजा तेज सिंह ने की थी। शितलगढ़ किला टीले का रूप हो गया है। सन 1716-17 में पंडुई राज के स्थापना के बाद सन 1865 तक निर्विरोध कार्य किया था। सन 1765 के बाद अरवल जिले के करपी प्रखंड के केयालगढ़को टिकारी राज के अधीन हो गया था।

18वीं सदी में पंडुई राज के 900 ग्राम/मौजा एवं 19वीं सदी मे 320 ग्राम/मौजा था। ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा पंडुई राज पर कई तरह के प्रतिबंध लगाकर शासन के अधिकार को सिमित कर कर दिया गया था। सन 1865 मे पंडुई राज का राजा श्री कन्हया शाही जी के मृत्यु के पश्चात पंडुई राज समाप्त हो गया। सन 1857 ई में पंडुई राज को समाप्त करने का षडयंत्र ब्रिटिश प्रशासन द्वारा किया गया था। नोनारगढ़, क्यालगढ़, शितलगढ़ राजाओं एवं मुगल शासक से संघर्ष हुआ था। अंग्रेजों से पंडुई राज अंत तक संघर्ष करते ही रहा था। अंग्रेजों के द्वारा पंडुई में ज़मीनदारी कायम कर जमींदार घोषित किया गया था। पंडुई राज के पंडुई के 108 विघे में निर्मित 12 हवेलियां में पंडुई के शीतलगढ़ कि हवेली, विष्णुपुर पंडुई का किला, विष्णुपुर पंडुई का पूर्वी हवेली, विष्णुपुर पंडुई का पश्चमी हवेली, विष्णुपुर पंडुई का गोदिल भवन हवेली, रामगढ़ पंडुई हवेली, रामगढ़ पंडुई लाल कोठी हवेली, रामगढ़ पंडुई का पिली कोठी हवेली, रामगढ़ पंडुई का लमडोरिया दरवार हवेली, रामगढ़ पंडुई का कूटेश्वर हवेली, सुल्तानी पंडुई का नयका हवेली, सुल्तानी पंडुई का दरवार पर हवेली, पंडुई मे जीर्ण शीर्ण अवस्था है। 1910 के बाद पंडुई राज के पंडुई राज के परिवार के बड़ा दरबार, मंझला दरबार, संझला दरबार और छोटा दरबार के रूप में विभक्त हो गया। 1934 के सरकारी रिपोर्ट के अनुसार पंडुई राज का मँझला दरबार सम्पन्न था। सन 1910 के बाद के पंडुई राज परिवार के नफासत, तुजकाई, महिनी और अंदाजगी किस्से मशहुर थे। सन 1765 में हुए सन्धि के अनुसार बिहार, बंगाल और उडीसा की दीवानी शासन अंग्रेजों की हाथ में आ गयी थी। पंडुई राज का शासन व्यवस्था ब्रिटिश सरकार के अधीन हो गया था।
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