राज्य में संस्कृत शिक्षा नहीं होने से राज्य की संस्कृति कैसे बचेगा : अ. भा. ब्राह्मण महासभा

अ. भा. संवाद सूत्र: गया
गया : अखिल भारतीय सर्व ब्राह्मण महासभा गया जी धाम की ओर से आयोजित प्रेस वार्ता में नवनियुक्त महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. जितेंद्र मिश्रा को राष्ट्रीय अध्यक्ष राज किशोर पांडे, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष अभय मिश्रा, राष्ट्रीय संत प्रकोष्ठ के अध्यक्ष प्रकृतिदूत सङ्कर्षनानन्द ज़ी महाराज, राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेमनाथ तैया, बृज़राज़ पाण्डेय ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. मिश्रा को माला पहनाकर सम्मानित किया गया। डॉ. मिश्रा ने प्रेस मीडिया को संबोधित एवं आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, समाज का दर्पण है जो आम जनमानस की आवाज सरकार से लेकर आम जनता तक पहुंचाने का कार्य करती है। आपने हमारे आमंत्रण को स्वीकार कर प्रेस वार्ता में अपनी उपस्थिति दर्ज की इसके लिए मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राज किशोर पांडे जी एवं उनके समस्त पदाधिकारी गण के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने मुझे इस लायक समझा। प्रेस वार्ता कार्यक्रम में मीडिया से पूछे जाने पर प्रेस वार्ता का उद्देश्य बताते हुए डॉ. मिश्र एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष दोनों ने अपने-अपने बयान में कहा कि आज बिहार में संस्कृति और संस्कृत दोनों समाप्त हो चुका है। जिस राज्य में संस्कृत की शिक्षा नहीं हो उस राज्य की संस्कृति कैसे बचेगा, यह चिंता का विषय है। सरकार द्वारा प्रत्येक जिले में राजकीय संस्कृत विद्यालय की स्थापना की गई थी, जिसके अध्यक्ष जिला पदाधिकारी होते हैं और शिक्षकों की नियुक्ति बिहार अवर शिक्षा सेवा से हुआ करता था। लेकिन उन संस्कृत विद्यालयों में कभी भी बहाली नहीं की गई। जो भी पुराने शिक्षक थे शिक्षा सेवा में प्रोन्नति होने के कारण सभी शिक्षक शिक्षा विभाग के अधिकारी बना दिए गए। सभी संस्कृत विद्यालय लगभग बंद हो गया है। जिसका उदाहरण गया के राजकीय संस्कृत विद्यालय है। दूसरी तरफ हमारे देश में 1857 से लेकर 1947 ई. में जो देश की आजादी के लिए जिन्होंने अपने प्राणों को न्योछावर किया, महासभा केंद्र सरकार और राज्य सरकार से निवेदन करता है क़ि अमर शहीदों को उचित सम्मान मिले। इसके लिए शिक्षण पाठ्यक्रमों में अमर शहीदों का इतिहास, सड़क के मुख्य मार्गों, चिकित्शालयों, शैक्षणिक संस्थानों, पार्कों आदि अमर शहीदों के नाम पर किया जाए।
भारत रत्न जैसे उपाधि अमर शहीदों के वंशज, परिवारों को देकर शहीदों को उचित सम्मान दिया जाए। हमारे समाज में 80 प्रतिशत ब्राह्मण गरीब हैं। जिनका जीविकोपार्जन पूजा-पाठ पर आधारित है। केंद्र सरकार द्वारा 10 प्रतिशत आरक्षण नौकरी में दी गई। लेकिन नौकरी में कब जाएंगे जब हमारी शिक्षा उच्च स्तर की होगी। अन्य समुदायों के लोगों को आरक्षण के आधार पर नौकरी भी दी जाती है और उनके लिए शिक्षा भी निःशुल्क दी जाती है। एक तरफ हमें नौकरी के लिए फॉर्म भरने के लिए हजारों रुपए देने पड़ते हैं। पढ़ाई पढ़ने के लिए लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। दूसरी तरफ एक समुदाय को नौकरी लेने के लिए परीक्षा शुल्क भी नहीं देना है। प्रायः पढ़ने के लिए भी फ्री है। यदि जांच किया जाए तो नौकरी लेने के लिए आरक्षित कोटे के जो भी व्यक्ति आवेदन कर रहे हैं तो उनकी आर्थिक स्थिति का जांच किया जाए। जांच में साबित होगा की सरकार ने जिन्हें सब फ्री किया है उससे ज्यादा अब के समय में गरीब ब्राह्मण समुदाय हैं। भारत के संविधान के मुताबिक मौलिक अधिकारों में समता का अधिकार आता है। यानी कि बराबर का अधिकार तो संविधान का नियम हम ब्राह्मणों पर क्यों नहीं लागू होता है। क्योंकि सरकार तो हम भी चुनते हैं, मतदान हम भी करते हैं लेकिन मेरे साथ दुरंगी नीति क्यों? क्या हम इस देश का नागरिक नहीं है? यदि सरकार द्वारा इन सभी बिंदुओं पर उचित निर्णय नहीं ली जाती है तो महासभा चरणबद्ध आंदोलन शुरू करेगी।
Hits: 64
क्या हमारे पास हमारे लिए समय है ?
पंडुई : गौरवशाली अतित का एक विरासत
08 मई 2022 रविवार को सूर्याेदय से दोपहर 02ः58 मिनट तक रविपुष्यमृत योग
अप्रशिक्षित शिक्षकों ने डीईओ गया से वेतन भुगतान की लगाई गुहार
शाकद्वीप: शक संबत और मध्य एशिया