शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ जी. आज़ाद की कविता ‘सच तो यह है’

जैसे कि धमाके की आवाज,
जो हुई है अभी मेरे पड़ौस में,
बेचौन हो गया हूँ इस आवाज से,
इस आशंका से यह सोचकर,
कि खत्म तो नहीं हो गई है,
तेरी दुनिया इस धमाके में।
इस धमाके की आवाज से,
चिंतित हूँ यह सोचकर मैं,
कि बिखर नहीं जाये इससे,
तुम्हारे ख्वाब और अरमान,
और मिट नहीं जाये इससे,
यह महशूर हस्ती तुम्हारी।
सच कहता हूँ तुमसे मैं,
सोचकर करना विश्वास तू,
सोचकर पकड़ना हाथ तू,
सोचकर करना प्यार तू,
सोचकर चुनना मंजिल तू,
इस मतलबी दुनिया में तू।
जो बदलता हो अपना रंग,
गिरगिट की तरहां बार-बार,
वक़्त को देखकर सच में,
जरूरत हो जिसको औरत की,
महज मनोरंजन के लिए,
अपने मन की प्यास को,
बुझाने के लिए सच में।
मैं नहीं मानता तुमको,
सच में एक खिलौना,
एक तन की जरूरत,
बहुत चाहता हूँ मैं,
सच्चे मन से तुमको,
इसीलिए करता हूँ ,
खबरदार मैं तुमको,
क्योंकि मुझको है,
तुमसे बहुत बहुत प्यार,
सच तो यह है।
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