साहित्य का स्वरूप एवं परिभाषा

नेहा मिश्रा, औरंगाबाद
साहित्य का विग्रह दो तरह से किया जा सकता है। सहित = स+हित= सहभाव,अर्थात हित का साथ होना ही साहित्य है। साहित्य का स्वरूप भाषा के माध्यम से अपने अंतरंग कि अनुभूति अभिव्यक्ति करने वाली ललित कला कव्या अथवा साहित्य कहलाती है ललित कला अथवा अंग्रेजी का fine Art शब्द उस कला के लिए प् प्रयुक्त होता है जिसका आधार सौंदर्य या सुकुमारता है।जैसे- चित्रकला नृत्य शिल्पकला वास्तुकला संगीत आदि।
किंतु आधुनिक धारणाओं के साथ ललित कला में अपेक्षित सौंदर्य भाव रमनियता का भाव धीरे धीरे लिप्त हो रहा है।अतः हर लालितकला सौन्दर्य को निर्मित करने वाली हो यह संभव नहीं।यथार्थ के अंकन के साथ सौंदर्य इस शब्द का बदलता अर्थ हम देख रहे हैं।साहित्य की व्युत्पत्ति को ध्यान में रखकर इस शब्द के अनेक अर्थ प्रस्तुत किए गए हैं ।यत प्रत्यय के योग से साहित्य शब्द की निर्मिती हुई है।शब्द और अर्थ का सह भाव ही साहित्य है।
साहित्य शब्द का प्रयोग 7 – 8 वी शताब्दी से मिलता है।इससे पूर्व साहित्य शब्द के लिए काव्य शब्द का प्रयोग होता था भाषा विज्ञान का ये नियम है कि जब एक ही अर्थ में दो शब्दो का प्रयोग होता है तो उसमे से एक अर्थ संकुचित या परिवर्तित होता है ।संस्कृत में जब एक ही अर्थ में साहित्य और काव्य शब्द का प्रयोग होने लगा तो धीरे धीरे काव्य शब्द का अर्थ संकुचित होने लगा।
आज काव्य का अर्थ केवल कविता है और साहित्य शब्द को व्यापक अर्थ में लिया जाता है।साहित्य का तात्पर्य अब कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, आत्मकथा अर्थात गद्य और पद्य सभी विधाओं से है। काव्य के स्वरूप को लेकर उसे परिभाषित करने प्रयास ई.वी.पूर्व 200 से अब तक हो रहा है।विविध विद्वानों ने साहित्य के लक्षण प्रस्तुत करते हुए उसे परिभाषित करने का प्रयास किया किन्तु इन प्रयासों कहीं अतिव्यप्ती तो कहीं अव्यप्ती का दोष है काव्य को परिभाषित करते समय यह विद्वान अपने समकालीन साहित्य तथा साहित्य विषयक धारणाओं से प्रभावित रहे हैं ।
हिंदी और अंग्रेजी के कुछ विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं के विवेचन के अनुसार-
जो प्रभावशाली रचना पाठक और श्रोता के मन पर आनंददाई प्रभाव डालती है।
कविता कहलाती है काव्य में विलक्षणता होती है जिसमे आनंद निर्माण करने की क्षमता होती हैं।
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